तस्वीरों में- छत्तीसगढ़ में राउत नाचा महोत्सव


राउत नाच यानी छत्तीसगढ़ में परम्परागत रुप से दूध-दही का व्यवसाय करने वाले यदुवंशियों के शौर्य और लोक के मिले-जुले रंगों वाला एक ऐसा लोकनृत्य जिसकी धूम पखवाड़े भर तक बनी रहती है.छत्तीसगढ़ में धान की कटाई-मिंजाई के साथ ही देवउठनी एकादशी से गांव-गांव में राउत अपनी खास पोशाक में झुंड के झुंड नृत्य करते और घरों से दान और ईनाम एकत्र करते हुए निकलते हैं.इन नर्तकों के साथ किसी स्त्री को देख कर चौंकिएगा नहीं. असल में ये स्त्री वेश में पुरुष होते हैं, जो ‘परी’ कहलाते हैं.

साथ में होता है पारंपरिक ‘गड़वा बाजा’ बजाने वाले ‘बजगरियों’ का समूह.राउत नाच के मौसम में इन ‘परियों’ और ‘बजगरियों ’ की चांदी रहती है और उन्हें किसी राउत नर्तकों के दल में शामिल रह कर नृत्य करने के बदले अच्छी-खासी रकम मिलती है. इनके मोल-भाव के लिए बाक़ायदा मेला लगता है.इस लोकनृत्य में राउत नर्तक पारंपरिक लोकमंगल के दोहे गाते हैं, पहेलियां बुझाते हैं, शेरो-शायरी करते हैं. अगर आपको अपने अंदाज में फरीदा ख़ानम और गुलाम अली की ग़ज़लें गाते नर्तकों का कोई दल झूमता नजर आ जाए तो मान लीजिए कि यह आधुनिकता का असर है.

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में पिछले कई सालों से राउत बाज़ार और राउत मेला लगता रहा है. लेकिन पिछले 30 सालों से इस मेले की जगह राउत नाच महोत्सव ने ले ली है.राउत नाच महोत्सव में राज्य के कोने-कोने से नर्तकों का दल एकत्र होता है. अलग-अलग रंगों और नृत्य के साथ जब एक के बाद एक कोई छह हजार से अधिक नर्तक मैदान में उतरते हैं तो उसकी छटा देखते ही बनती है.
एक साथ हज़ारों नर्तकों की सहभागिता वाले अपनी तरह के इस अनूठे आयोजन में राज्य और राज्य से बाहर के दर्शक बड़ी संख्या में उमड़ते हैं. पूरी तरह जन सहयोग से आयोजित होने वाले इस उत्सव की धमक बहुत समय तक बनी रहती है.
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